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मेरे साईं सीरियल song - साईं वचन है lyrics with mp3
मेरे साईं सीरियल में हर एक गीत अति आनंददायी है और इन्हें सुनके बहोत ही अच्छा लगता है। अब इसमें एक और नया गीत जुड़ गया है जिसके लिरिक्स हैं "साईं वचन हैं".
साईं बाबा नित्य ईंधन इकटठा कर वे अखण्ड जलने वाली पवित्र धुनी प्रज्वलित रखा करते थे। लकडी जलने के बाद श्री बाबा बची हुई राख, जिसे ऊदी कहते थे, सभी भक्तों को विदा होने के समय प्रसाद के रूप में बाँटा करते थे।
उस समय श्री साईं बाबा की ऊदी का महत्व लोगों ने स्वीकार किया था और अभी भी वर्तमान समय में श्री साईं बाबा के हस्तस्पर्श से पुनीत हुई धूनी की ऊदी भक्तों के लिए एक अत्यन्त मूल्यवान निधि है। साईं ऊदी ने हजारों भक्तों की मानसिक तथा शारीरिक व्यथाओं को दूर करने का अद्भुत चमत्कार कर दिखाया है।
द्वारकामाई में निरंतर प्रज्जलित रहने वाली धूनी की विभूति अर्थात साईं की उदी के सम्बन्ध में हज़ारों लोगों को विलक्षण अनुभव हो चुके हैं। साईंभक्तों के उन्ही अनुभवों में से कुछ अनुभव यहाँ आपके साथ साझा किये गए हैं और समय समय पर और भी घटनाओ को इसमें जोड़ा जायेगा।
1. साईं बाबा की उदी से पारसी व्यक्ति की बेटी मिर्गी रोग से मुक्त हुई
एक पारसी सज्जन की छोटी लड़की मिर्गी के रोग से ग्रस्त हो गई। बार-बार उसके हाथ-पैर ऐठ जाते और वह मूर्छित हो जाती थी। उस सज्जन ने साईं बाबा की ऊदी का प्रयोग किया और धीरे-धीरे लड़की रोग-मुक्त हो गई।
2. साईं बाबा की उदी से वृश्चिक का विष उतर गया
नासिक क्षेत्र में नारायण मोतीराम जानी नाम के एक सज्जन श्री साई महाराज के परम भक्त रामचंद्र मोडक के पास नौकरी करते थे। एक दिन अनायास ही नारायणराव को श्री बाबा के दर्शनार्थ जाने का सुअवसर प्राप्त हुआ। दर्शन करते समय नारायणराव की माता ने श्री बाबा से अपन पुत्र पर कृपा-दृष्टि रखने की प्रार्थना की। श्री बाबा ने नारायणराव को आशीर्वाद दत हुए कहा, "अब इसके उपरांत किसी की सेवा-चाकरी न करो। अपना ही कोई स्वतंत्र व्यवसाय आरम्भ करो।" उसी क्षण नारायणराव ने अपना नौकरी से त्याग-पत्र दे दिया और नासिक में 'आनंदाश्रम' की स्थापना कर शीघ्र ही अपने व्यापार में पर्याप्त उन्नति की।
कुछ दिनों के बाद नारायणराव के इसी 'आनंदाश्रम' में उनका एक चिर-परिचित मित्र थोड़े दिन रहने के उद्देश्य से आया। एक दिन एकाएक उसे वृश्चिक ने काट लिया। वृश्चिक के काटने से होने वाली वेदना दूर करने का सामर्थ्य श्री बाबा के ऊदी में है, यह नारायणराव भली-भाँति जानते थे। अतएव वे तुरंत ही ऊदी ढूँढने लगे। पंरतु शिरडी से जो ऊदी वे लाये थे, वह समाप्त हो चुकी थी। इधर उनका मित्र असह्य वेदना से तड़प रहा था। आखिर नारायणराव ने श्री बाबा का चित्र के सम्मुख रख वहाँ एक सुगन्धित अगरबत्ती जलाई और श्री बाबा के नाम का जप करना आरम्भ कर दिया। नियम समय पर जप पूरा होने के पश्चात् चित्र के सामने पडी हुई अगरबत्ती की राख में से एक चुटकी भर राख उठाकर नारायणराव ने उसे ही श्री बाबा की ऊदी मानकर मित्र के उसी अंग पर लेप कर दिया, जहाँ वृश्चिक ने काटा था। मित्र की वेदना तुरंत बंद हो गई और वृश्चिक का विष उतर गया। नारायणराव का मित्र पूर्ववत् स्वस्थ चित्त हो गया। नारायणराव बहुत प्रसन्न हुए और श्री बाबा में उनकी भक्ति और भी दृढ़ हो गई।
3. साईं बाबा की उदी समान मिट्टी ने प्लेग का रोग दूर किया
श्री बाबा द्वारा अपने हाथों से दी हुई ऊदी का जितना गुणकारी प्रभाव होता था, उतनी ही उनके श्रद्धालु भक्तों द्वारा उनके नाम पर दी हुई भस्म भी अचूक फलदायी सिद्ध होती थी। नानासाहेब चाँदोरकर एक बार अपनी पत्नी सहित कल्याण जा रहे थे। मार्ग में ठाणा स्टेशन पर बांद्रा में रहने वाले उनका एक मित्र उन्हें मिला और बड़ी घबड़ाहट में उसने सूचित किया कि उसकी लड़की को प्लेग हो गया। नानासाहेब के पास उस समय श्री बाबा की ऊदी नहीं थी। पंरतु भक्ति और श्रद्धा से श्री बाबा का नाम स्मरण कर उन्होंने अपने पैर तले की एक चुटकी भर मिटटी लेकर अपने मित्र काद दी और उसे श्री साई महाराज के चरणों में लीन होने का आदेश दिया।
नानासाहेब के मित्र ने घर जाकर प्लेग की गुठलियों पर ऊदी का लेप लगा दिया। उसी क्षण से लडकी का ज्वर दूर होना आरम्भ हो गया और प्लेग जैसे असाध्य रोग से लड़की शीघ्र ही रोग मुक्त हो गई। साईं बाबा का केवल नाम स्मरण कर उठाई हुई मिटटी ने भी कितना अद्भुत चमत्कार कर दिखाया।
नानासाहेब चाँदोरकर ने साईं बाबा का नाम लेकर ऊदी के बदले मिट्टी देकर जिस साहस का परिचय दिया, उसका एकमेव कारण था, साईं बाबा में उनका अटूट विश्वास तथा अविचल श्रद्धा।
साईं बाबा द्वारा अपने हाथों से दी हुई उदी का जितना गुणकारी प्रभाव होता है, उतनी ही उनके श्रद्धालु भक्तों द्वारा उनके नाम पर दी हुई भस्म भी अचूक फलदायी सिद्ध होती है।
4. नानासाहेब चाँदोरकर की पुत्री का सकुशल प्रसव
नानासाहेब चाँदोरकर जब जामनेर में तहसीलदार का पद सुशोभित कर रहे थे तो एक बार श्री बाबा की उदी का उन्हें भी विलक्षण अनुभव हुआ था। खानदेश जिले के जामनेर जैसे साधारण तथा सर्वथा अपरिचित गाँव में जब वे कार्यवश निवास कर रहे तो उन्हें एक बार अति विकट परिस्थिति का सामना करना पड़ा था। उनकी लाड़ली बेटी मैनाताई प्रसव के लिए जामनेर आई हुई थी। दिन पूरे होते ही एकाएक उसकी अवस्था गम्भीर हुई। लगातार तीन दिन प्रसव वेदना जारी रही। स्थिति में सुधार होने की संभावना दिखाई न दी ओर सभी लोग चिंता में डूब गये।
नानासाहेब तथा उनकी पत्नी ने श्री बाबा का नाम स्मरण आरम्भ किया। ठीक इसी समय शिरडी में बैठे-बैठे श्री बाबा ने अंतर्ज्ञान से जान लिया कि उनका भक्त संकट में है। उन्होंने खानदेश मे अपने गाँव जाने के लिए उद्यत एक साधु रामगीर बुवा को बुलवाया और उसे आज्ञा दी कि गाँव जाते समय मार्ग में जामनेर में थोड़ी देर ठहर कर नानासाहेब चाँदोरकर के पास ऊदी और आरती की एक प्रति पहुँचा दे। रामगीर बुवा ने नम्रता से उत्तर दिया कि उसके पास केवल दो ही रूपये बाकी है, जो जलगाव तक ही रेल का किराया चुकाने के लिए पर्याप्त है। इस पर श्री बाबा के यह का पर कि वह कोई चिंता न करे, उसकी सारी व्यवस्था हो जायेगी।
रामगार निःसंदेह मन से श्री बाबा की आज्ञानुसार दोनों वस्तुएँ लेकर चल जलगाँव स्टेशन पर वे रात को लगभग तीन बजे उतरें। उस समय उनके पास केवल दो आने ही बचे थे। चिंता में व्याप्त हो रामगीर बुवा यह सोच ही रहे थे कि आगे क्या करना चाहिएँ कि तभी एक अपरिचित व्यक्ति ने आकर प्रश्न किया-"शिरडी का रामगीर बुवा कौन है ?" रामगीर बुवा को जब ज्ञात हुआ कि नानासाहेब ने ही उस व्यक्ति को ताँगा साथ लेकर भेजा है, तो वे उसके साथ ताँगे में बैठ जामनेर की ओर चल दिए और प्रातःकाल जामनेर पहुँचे।
गाँव की सीमा के निकट पहुँचने पर रामगीर बुवा लघुशंका से निवृत्त होने के लिए थोडी देर के लिए ताँगे में से उतरे। वापस आकर देखा तो वह मनुष्य और ताँगा दोनों ही अदृश्य हो चुके थे। इस घटना से रामगीर बुवा के आश्चर्य का ठिकाना न रहा। अकेले ही समीप एक कचहरी में प्रवेश कर उन्होंने नानासाहेब के संबंध में पूछताछ की और पूछते-पूछते उनके घर पहुँच गये।
रामगीर बुवा ने नानासाहेब को बतलाया कि श्री बाबा की आज्ञा से वे शिरडी से जामनेर आये है। श्री बाबा की दी हुई ऊदी तथा आरती का कागज उन्होंने नानासाहेब को सौंप दिया। उस नानासाहेब की लड़की मैनाताई बहुत गंभीर तथा संकटपूर्ण अवस्था में थी, मानो अतिम साँसे ले रही हो। घर के सभी लोग नितांत निराश हो बैठे थे। नानासाहब ने पत्नी को बुलाकर श्री बाबा की भेजी हुई ऊदी उसके सुपुर्द कर दी।
लडकी के कमरे में प्रवेश कर नानासाहेब की पत्नी ने घोलकर उसे पिला दी और वह स्वयं श्री बाबा की भेजी हुई आरती गाने लगी। श्री बाबा की ऊदी ने अद्भुत चमत्कार दिखाया। कुछ ही देर बाद मैनाताई कशलतापूर्वक प्रसव पीडा से मुक्त हो गई और एक संत बालक के रोने की आवाज वहाँ उपस्थित लोगों के कानों में गूँज उठी।
सभी ने अत्यन्त प्रेम और श्रद्धा से साईं के चरणों मे अपने मस्तक नत किये। रामगीर बुवा ने धन्यवाद देते हुए नानासाहेब से कहा कि उन्होंने ठीक समय पर अपना आदमी और ताँगा दिया था, इसलिये वे ठीक समय पर उपस्थित हो सके। परंत, रामगीर बुवा के ये शब्द सुनकर तो नानासाहेब अचम्भे में पड़ गए, क्योंकि ये बातें उनके ध्यान में ही नहीं आई थी। अपनी पुत्री के लिए वे इतने अधिक चिंताग्रस्त थे कि यह सब कुछ करना उनके लिए बिल्कुल असम्भव था और वैसे भी नानासाहेब ने किसी भी व्यक्ति को ताँगे के साथ स्टेशन नहीं भेजा था, क्योंकि रामगीर बुवा के जामनेर आने की कोई पूर्व सूचना तो उन्हें थी नही।
तदनंतर सभी उपस्थित लोगों ने उस गढ़वाली क्षत्रिय मनुष्य तथा उसके ताँगे की पर्याप्त खोज की। परंतु उसका कहीं भी पता न लग सका। वास्तव में प्रत्यक्ष श्री साई महाराज ही अपने भक्त के संकट निवारणार्थ वहाँ प्रकट हुए थे। श्री बाबा की लीलाएँ ऐसी ही विस्मयकारी होती थी। इस घटना से नानासाहेब का श्री बाबा में विश्वास और भी दृढ़ हो गया।
5. डॉक्टर को समझ आई साईं उदी की महिमा
मालेगाँव के एक सुप्रसिद्ध डॉक्टर का एक तरूण भतीजा हड्डी के क्षय रोग से ग्रस्त हुआ। स्वयं डॉक्टर साहब ने निजी प्रयत्नों से उसे स्वस्थ करने में कोई कसर न छोडी। अन्य प्रसिद्ध सर्जनों से विचार-विमर्श किया गया। अंतिम उपाय के रूप में उस लड़के पर शल्य-क्रिया भी की गई। पंरतु, रूपये में आना भर भी लाभ न हुआ। अंततः कुछ समझदार लोगों ने लडके के माता-पिता को किसी दैवी उपाय का आश्रय लेने का परामर्श दिया और इस अभिप्राय से ही श्री साई महाराज का उल्लेख किया।
लड़के के माता-पिता ने तुरंत ही शिरडी के लिए प्रस्थान किया और श्री बाबा के चरणों में लड़के को डालकर उसे जीवन-दान देने के लिए उनसे अनन्य भाव से प्रार्थना की। मुस्कुराते हुए लड़के की ओर देखकर श्री बाबा बोले, “इस द्वारकामाई का जिसने सहारा लिया, उसे कभी भी कोई दुःख सहन नहीं करना पड़ेगा। आप यत्किंचित चिंता न करें। ईश्वर में पूर्ण भरोसा रखो और मेरी धूनी की ऊदी का रोग-ग्रस्त स्थान पर सतत् लेप करते रहो। एक सप्ताह में लड़का रोग-मुक्त हो जायेगा।"
लड़के संबंधियों ने श्री साईं बाबा का बताया हुआ उपचार करने का दृढ़ निश्चय किया। श्री बाबा ने लड़के को अपने पास बैठाया। उसके शरीर के रोग-ग्रस्त भाग पर प्रेम से धीरे-धीरे हाथ फेरकर और एक क्षण के लिए एकाग्रचित्त से उसकी और देखते हुए श्री बाबा पुनः बोले- “यह मस्जिद नही, वरन् प्रत्यक्ष भगवान श्रीकृष्ण की द्वारावती है। यहाँ आने से सब दुःख तथा पापों का नाश होना ही चाहिये। श्री बाबा के मुख से इतने आत्मविश्वास के साथ निकले हुए बोल असत्य कैसे सिद्ध हो सकते है ? वह लड़का केवल आठ दिनों में पूर्णतः रोग मुक्त हुआ और श्री बाबा से ऊदी प्रसाद प्राप्त कर सब लोग हर्ष-विभोर हो अपने गाँव लौट गये। लड़के को बिल्कुल स्वस्थ देख उसके चाचा को, जो स्वयं डॉक्टर थे, बडा आश्चर्य हुआ और उन्होंने इसे एक चमत्कार ही समझा।
कुछ दिनों पश्चात् डॉक्टर साहब निजी व्यवसाय के कारण बम्बई जाने के लिए निकले। उन्होने मार्ग में शिरडी में उतरकर श्री बाबा के दर्शन करने का भी मन-ही-मन निश्चय किया। पंरतु मालेगाँव से मनमाड के मध्य मिले हुए कुछ मित्रों ने श्री बाबा के विषय में कुछ असत्य तथा मनगढन्त कहानियाँ सुनाकर उन का मन कलुषित कर दिया। अब शिरडी जाने का संकल्प त्यागकर डॉक्टर साहब सीधे बम्बई पहुँचे।
वहाँ लगातार तीन रात सपनों में डॉक्टर साहब के कानों में कोई मनुष्य चिल्लाकर “अब भी तुम्हारा मुझमें विश्वास नहीं ?" ये शब्द स्पष्टतः उच्चार करता रहा। स्वप्न में मिली हुई इस शिक्षा के बल पर डॉक्टर साहब ने शिरडी जाने का पुनः दृढ़ निश्चय किया। उस समय उनके पास उपचार के लिए आये हुए एक रोगी की अवस्था गम्भीर थी। उसका ज्वर लगातार बढ़ता ही जा रहा था।
“मेरे रोगी का ज्वर यदि तुरंत ही दूर हुआ तो एक क्षण के लिए भी विलम्ब न कर शिरडी पहुँचूँगा” इस प्रकार मन में निश्चय कर नित्य की भाँति डॉक्टर साहब रोगी को देखने के उददेश्य से चल पड़े। आश्चर्य यह हुआ कि उस दिन रोगी को ज्वर नही आया। डॉक्टर साहब का पूर्ण समाधान हुआ। श्री बाबा कोई सामान्य व्यक्ति न होकर परमोच्च कोटि पर पहुँची हुई एक असामान्य विभूति है, यह दृढ़ भावना डॉक्टर साहब के मन में उत्पन्न हुई और उन्होंने शिक्षा पहुँचते ही नम्रता से श्री बाबा के चरणों में आत्मसमर्पण कर दिया।
वहीं श्री बाबा ने कुछ और लीलाएँ दिखाकर, द्वारकामाई की ऊदी में कितना प्रचण्ड सामर्थ्य भरा हुआ है, यह प्रमाणों सहित सिद्ध कर दिखाया। डॉक्टर साहेब तद्नंतर श्री बाबा की सेवा में तल्लीन हुए, बहुत दिन शिरडी में रहे और ऊदी प्रसाद प्राप्त कर वापिस गाँव पहुँचे। मालेगाँव पहुँचते ही उन्हें बीजापुर में एक उच्च पद पर नियुक्त होने की सूचना मिली। भतीजे का रोग-ग्रस्त होना एक निमित्त मात्र हुआ और डॉक्टर साहब को एक परमोच्च कोटि में पहुँचे हुए सिद्ध पुरूष के सहवास का दुर्लभ अवसर मिला। यह सचमुच पूर्व जन्म का पुण्यों का फल ही समझना चाहिए।
वैसे हमारा शिरडी आना जाना तो लगा ही रहता है लेकिन साल के पहले दिन कभी भी साईं दर्शन का मौका नहीं मिला था। इस बार साईं की कृपा हुई और साल २०२२ के पहले ही दिन शिरडी जाने का प्लान बना। हम रहने के लिए नाशिक में हैं तो एक दिन में आना जाना हमारे लिए आसान था। हमें पता था की नए साल पे शिरडी में भक्तों की भारी भीड़ होती है और इस बार भी साईं भक्तों का ताँता लगा हुआ था।
नाशिक से साईं प्रसादालय और साईं मंदिर तक जाने का अनुभव
१ जनवरी २०२२ सुबह ११ बजे हम नाशिक से निकले। नाशिक से शिरडी तक का २ घंटे का रस्ता है। हमने दोपहर ३ बजे दर्शन का टिकट बुक किया था। सुबह के समय भारी भीड़ होगी यह सोच कर हमने दोपहर का समय दर्शन के लिए तय किया था जब भीड़ थोड़ी कम होगी। हमेशा ही दोपहर की साईं आरती के २ घंटे के बाद भीड़ काफी कम होती है। हम दोपहर के १ बजे तक पहुंच गए दर्शन में समय था तो हम साईं प्रसादालय चले गए और वहा साईं प्रसाद ग्रहण किया। प्रसादालय में भी काफी भीड़ थी लेकिन ज्यादा समय नहीं लगा और १० मिनट्स में हमारा नंबर आ गया। प्रसादालय में भोजन ग्रहण करने के पश्चात् हम साईं समाधी मंदिर गए।
प्रसादालय से मंदिर की तरफ जाने के लिए जो रास्ता है वो ट्रैफिक से भरा हुआ था तो ट्रैफिक पुलिस ट्रैफिक को डाइवर्ट कर रहे थे। इस वजह से हम पीछे वाले रास्ते से साईं समाधी मंदिर पहुंचे। काउंटर पर भीड़ से बचने के लिए और समय न बर्बाद हो इसलिए मोबाइल और जूते-चप्पल हमने गाड़ी में ही रख दिए। हमने फ्री दर्शन पास लिया था तो हमें गेट नंबर-2 पे जाना था। गेट नंबर १ पे ही इतनी भीड़ थी की लोग ठसाठस भरे हुए थे। सुबह सुबह ही वैष्णो देवी में हुए भगदड़ की खबर सुनी थी लगा कही यहाँ भी वही हाल न हो जाये इसलिए वह से गेट नंबर २ तक जाने हिम्मत ही नहीं हो रही थी। पर जैसे तैसे हम भीड़ में घुसे और भली-भांति निकल भी आये और हमने चैन की सांस ली।
साईं मंदिर के सिक्योरिटी में चूक
हमने गेट नंबर २ से एंट्री ली लेकिन वहाँ पर मौजूद सिक्योरिटी ने टिकट चेक ही नहीं किया। उसके बाद जहाँ टिकट के साथ ID proof चेक किया जाता है वहाँ भी किसी ने कुछ भी चेक नहीं किया बस पेपर देख के आगे बढ़ने के लिए बोल दिया।
साईं दर्शन in Covid time
कोविद के समय में ही हमने अब तक सबसे अच्छे दर्शन किये थे क्योंकि कोविद की वजह से लोगो में अच्छा खासा अंतर होता था और लाइन निरंतर बिना रुके चलती रहती है जिससे दर्शन जल्दी हो जाते है। २०२१ में मैंने तीन बार साईं दर्शन किया और तीनो बार अच्छा अनुभव था। सभी जहाँ कोविद नियमों का पालन और अनुशासित भीड़ से साईं दर्शन बहोत ही अच्छे से हुआ है। मंदिर के बाहर भले ही कितनी भीड़ हो लेकिन मंदिर के अंदर सब कुछ बढ़िया रहता था।
इस बार यानी कि साल २०२२ में भी भीड़ बहोत थी और मंदिर के अंदर लोगो में दूरी नहीं थी। कई जगह पर मैंने देखा कि जहाँ देखरेख के लिए मंदिर का कोई स्टाफ नहीं होता था वहां लोग आगे निकलने के लिए कही से भी लाइन तोड़ के आगे निकल जाते थे। भले ही भारी भीड़ थी लेकिन दर्शन फटाफट हो गया। आधे घंटे में हम दर्शन करके बाहर भी आ गए।
साईं मुख दर्शन के लिए भी लाइन लगी हुई थी। मुख दर्शन के लिए जो लाइन थी वह द्वारकामाई से घुमाई जा रही थी। ये अच्छा काम हो गया जिससे सभी को साईं के दर्शन हो जाते हैं। कुल मिलाकर नए साल पर साईं दर्शन का अनुभव अच्छा रहा और पहली बार नए साल के मौके पर शिर्डी आने का मौका मिला इससे मन अति प्रसन्न।
साईं कष्ट निवारण मंत्र का नियमित जाप करते रहने से सुख, समृद्धि और सेहत से भरपूर रहते हैं। आप किसी भी दुःख तकलीफ में हो या ना हो इस मंत्र का जाप करना चाहिए। साईं कष्ट निवारण मंत्र पढ़ते हुए पूरी तरह से साईं का ध्यान करें और साईमय हो जाये। इससे आपको साईं बाबा के पास होने की अनुभूति होगी और आप स्वयं साईं से अपनी बात कह रहे हैं ऐसा एहसास होगा।
साईं बाबा को समर्पित अतिपावन "श्री साईनाथ स्तवन मंजरी" के लेखक दास गणु महाराज जी हैं जो एक महान कीर्तनकार और साईं बाबा के अनन्य भक्तों में से एक थे। साईं स्तवन मंजरी दास गणु की अनेक प्रसिद्द रचनाओं में से एक है जो साईं बाबा की स्तुति में लिखी गयी है। हृदयस्पर्शी साईं स्तवन मंजरी में दास गणु (एक भक्त) स्वयं को साईं बाबा (अपने गुरु व भगवान) को पूरी तरह से समर्पित करते हैं और मन को पूर्णतः शुद्ध करने की इच्छा प्रकट करते हैं। मंगलदायक साईं स्तवन मंजरी का पाठ साईभक्तों के लिए अत्यंत कल्याणकारी है।
७ अक्टूबर २०२१ में जब महाराष्ट्र के सभी मंदिर खोले गए तभी मैंने भी शिर्डी साईं बाबा के दर्शन के लिए टिकट्स बुक कर लिए और इस बार रहने के लिए साईं आश्रम भक्तनिवास का चुनाव किया। यहाँ मैंने अपने साईं आश्रम के अनुभवों को आपसे साझा किया है जो आपके लिए उपयोगी हो सकता है। पिछली बार जब हम दर्शन के लिए आये थे तब हम द्वारावती भक्तिनिवास में ठहरे थे और उसका अनुभव भी काफी अच्छा था।
साईं आश्रम भक्तिनिवास साईं बाबा समाधी मंदिर से १.५ km की दूरी पर स्थित है और यह मंदिर से जुड़ी रोड पर ही स्थित है जिससे इसे ढूंढने में कोई परेशानी नहीं होती।
साईं आश्रम भक्तनिवास संस्थान के तीनो निवासस्थानों में से सबसे बड़ा है और इसमें AC rooms, Non-AC रूम्स सब मिलाकर कुल १५३६ rooms सम्मिलित हैं। साईं आश्रम का परिसर विशाल है और यहाँ पर ओपन एयर थिएटर (OAT) भी है जहाँ लगभग २००० की संख्या में साईं भक्त एक साथ भजन कीर्तन का प्रोग्राम कर सकते हैं।
AC rooms Rs . ६०० तो non-AC rooms Rs . २५० में उपलब्ध हैं। भक्तिनिवास परिसर में चाय (Rs.3), कॉफ़ी (Rs.३), दूध (Rs.5) और पानी के बोतल (Rs.१०/लीटर) की भी सुविधा है। इन सबके अलावा सुबह का नाश्ता, दोपहर और रात का खाना भी मामूली कीमत पर प्रदान किया जाता है।भक्तिनिवास से साईं मंदिर और प्रसादालय तक आने जाने के लिए संस्थान की तरफ से निःशुल्क बस की भी व्यवस्था है।
साईं आश्रम AC रूम details
हम कुल मिलाकर ४ लोग थे, तीन वयस्क और १ बच्चा। १ AC room बुक किया Rs . ६०० में, इसमें ३ बेड थे और इसमें हमारा काम आसानी से हो गया। इसमें वेस्टर्न टॉयलेट था। AC और फैन अच्छे से काम कर रहे थे। बाथरूम में गरम पानी आ रहा था और टॉयलेट कमोड सीट में लगा जेट स्प्रे भी ठीक काम कर रहा था। शौचालय और स्नानघर सहित पूरा कमरा साफ सुथरा था।
संसथान की तरफ से प्रदान किए गए तीनों बिस्तर ठीक थे लेकिन बेडशीट, तकिए के कवर और ओढ़ने की चादर ये सब अच्छी स्थिति में नहीं थे, इसलिए मेरा सुझाव है कि आप अपने साथ पर्याप्त मात्रा में बेडशीट और ओढ़ने की चादर जरूर ले जाएं।
दो प्लास्टिक की कुर्सियां और सामान रखने के लिए रैक भी था। कुल मिलाजुलाकर Rs. ६०० में सब कुछ बढ़िया था। कमरे में अतिरिक्त व्यक्ति को समायोजित करने के लिए Rs. ५० प्रति व्यक्ति की कीमत पर अतिरिक्त बिस्तर भी मिलता है। एक कमरे में अधिकतम 5 व्यक्तियों को ठहराया जा सकता है।
साईं भक्तिनिवास से आप साईं दर्शन के लिए भी पास ले सकते हैं परन्तु Covid के चलते अभी यह सुविधा उपलब्ध नहीं है क्योंकि भक्तों की भारी भीड़ को नियंत्रित करने के लिए अभी ऑनलाइन बुकिंग को अनिवार्य किया गया है। साईं दर्शन बुकिंग के लिए यह जरूर पढ़ें - शिरडी साई बाबा मंदिर के rules and guidelines during Covid.
माँ दुर्गा आरती - ॐ जय अम्बे गौरी लिरिक्स हिंदी में
माँ अम्बे दुर्गा देवी का ही एक रूप हैं जिन्हे भगवती के नाम से भी जाना जाता है। माँ अम्बे को ही संपूर्ण सृष्टि, सभी जीव और प्राणियों की माता कहते हैं। असुर शुम्भ - निशुम्भ और चंड - मुंड का संहार करने वाली माँ अम्बे की आरती "जय अम्बे गौरी मैया जय श्यामा गौरी" का पाठ करें (जिसमें माता रानी की स्तुति बहोत ही सुन्दर तरीके से की गयी है) और माँ का आशीर्वाद प्राप्त करें।
MX Player द्वारा साईं बाबा पर आधारित हिंदी वेब सीरीज अगस्त २०२१ में प्रकाशित किया गया है जिसमें साईं बाबा के जीवन की कहानियों, चुनौतियों और उनके चमत्कारों को चित्रित किया गया है। इस वेब सीरीज का title song साइयाँ काफी लोकप्रिय है और इसके lyrics mp3 के साथ नीचे दिए गए हैं।
शिरडी यात्रा योजना - रहने के व्यवस्था, भोजन, साईं दर्शन, घूमने की जगह
यह लेख साईं भक्तों को शिरडी यात्रा का संपूर्ण विवरण देती है। शिरडी यात्रा की योजना बनाने से पहले आपको जिन बातों को जानना जरूरी है यहाँ पर उसका उल्लेख किया गया है। शिरडी कैसे पहुंचे, शिरडी में रहने की व्यवस्था, भोजन की व्यवस्था, साईं दर्शन के लिए पास बुकिंग, शिरडी में आस पास घूमने की जगह इत्यादि के बारे में आपको जानने को मिलेगा।
फिलहाल अभी Covid १९ के चलते State Goverment आदेशानुसार कुछ गाइडलाइन्स संस्थान द्वारा निर्धारित किये गए हैं जिनका पालन करना हर किसी के लिए अनिवार्य है।
शिरडी तक सड़क, ट्रेन और हवाई मार्ग से आसानी से पहुँचा जा सकता है। अगर आप आसपास के शहरों से शिरडी आ रहे हैं तो आप कार या फिर बस से यात्रा कर सकते हैं। महाराष्ट्र राज्य परिवहन की बहुत सारी बसें शिरडी और कई शहरों के बीच चलाई जा रही हैं जिनका संपूर्ण विवरण आप साईं बाबा संस्थान ट्रस्ट की आधिकारिक वेबसाइट से ले सकते हैं। इसके अलावा कई प्राइवेट बसेस का भी शिरडी से कई शहरों के बीच आना जाना रहता हैं।
अगर आप ट्रेन से शिरडी आना चाहते हैं तो आपको निकटतम रेलवे स्टेशन साईंनगर, कोपरगाव, मनमाड, या फिर नागरसूल पर उतरना होगा और फिर यहाँ से टैक्सी या बस करके समाधी मंदिर तक आया जा सकता हैं। अगर आपका ट्रेन साईंनगर स्टेशन से होकर गुजरता है तो आप यहीं पर उतरें अन्यथा बाकी बताये गए स्टेशन से होकर गुजरने वाली ट्रेन से यात्रा करें।
अगर आप हवाई जहाज से यात्रा कर रहे है तो शिरडी का एकमात्र निकटतम हवाई अड्डा Shirdi International Airport (साईं बाबा समाधि मंदिर से 14 किमी की दूरी पर स्थित) है। श्री साईं बाबा संस्थान ट्रस्ट की वेबसाइट से शिरडी के लिए विभिन्न ट्रेनों और उड़ानों के बारे में जानकारी ले सकते है।
शिरडी में रहने की व्यवस्था - भक्तनिवास
शिरडी में रहने के लिए आवास स्थानों की कोई कमी नहीं है। श्री साईं बाबा संस्थान ट्रस्ट की तरफ से ही साईं भक्तों के लिए भक्तनिवास की व्यवस्था की गयी हैं जहाँ पर साईंभक्त कम कीमत में आराम से रह सकते हैं और निशुल्क भक्तनिवास से समाधी मंदिर और साईं प्रसादालय तक यात्रा कर सकते हैं।
साईं आश्रम, साईं बाबा भक्तनिवास और द्वारावती ये तीन भक्तनिवास हैं, यहाँ पर आपको बहुत ही सस्ते दामों पर रहने की जगह मिलती हैं। इन सभी भक्तनिवास स्थानों में सभी सुविधाओं से लैस बड़ी संख्या में कमरे उपलब्ध हैं। भक्तनिवास में रहने के लिए आपको कोशिश करना चाहिए की १ महीने पहले ही आप online बुकिंग कर लें क्योंकि यहां पर कमरे बहुत जल्दी बुक हो जाते हैं।
श्री साईं बाबा ट्रस्ट संस्थान द्वारा साईं प्रसादालय में साईं भक्तों के लिए मुफ्त या फिर कम से कम कीमत में भोजन की व्यवस्था की जाती है। साईं बाबा को भोग चढ़ाया हुआ खाना यहाँ भक्तों में वितरित किया जाता है, अगर आप शिरडी में हैं तो आपको यहाँ पर आकर साईं प्रसाद भोजन जरूर खाना चाहिए।
साईं भक्तों का सालभर ही यहाँ पर ताँता लगा रहता हैं। शिरडी समाधि मंदिर में ३ त्यौहार रामनवमी, गुरु पूर्णिमा और विजयदशमी, बहुत महत्वपूर्ण तरीके से मनाये जाते हैं और इस समय शिरडी में भारी भीड़ होती है। गर्मी के मौसम में यहाँ पर तापमान अधिक होने की वजह से आप शिरडी यात्रा का संपूर्ण आनंद नहीं उठा सकेंगे इसलिए आप को बाकी मौसम जैसे की बरसात या फिर सर्दी के मौसम में यहाँ आना चाहिए जिससे आप शिरडी के साथ साथ आस पास के शहरों की यात्रा का योजना बना सकते हैं।
साईं आरती के वक़्त साईं दर्शन में लगे भक्त वहीं के वहीं रोक दिए जाते हैं जब तक आरती समाप्त ना हो जाये और इसकी वजह से साईं दर्शन में अत्यधिक समय लगता हैं। अगर आपने साईं दर्शन का निशुल्क पास लिया है तो मेरा सुझाव है कि साईं आरती के समय के १-१.५ घंटे पहले लाइन में ना लगें क्योंकि अगर आपका नंबर आने से पहले ही आरती शुरू हो गयी तो आपको बीच में ही लाइन में लगे रहना पड़ेगा। इसलिए आरती के बाद वाला समय दर्शन के लिए उचित है, दोपहर में २-३ बजे या फिर रात में ८-९ बजे। इस समय तुरंत दर्शन हो जाते हैं।
साईं दर्शन और पास
साईं दर्शन के लिए आपके पास दर्शन पास होना आवश्यक है। आप साईं दर्शन पास online साईं संस्थान के वेबसाइट से या फिर offline मंदिर के समीप स्थित पंडाल से अथवा भक्तनिवास से भी प्राप्त कर सकते हैं। निशुल्क दर्शन पास और VIP पास दोनों उपलब्ध हैं। Free पास में दर्शन में ज्यादा समय लग सकता है और VIP पास में दर्शन जल्दी हो जाते हैं।
साईं दर्शन पास लेके पहले अपने जूते-चप्पल, मोबाइल, कैमरा, सामान सब कुछ मंदिर के पास के काउंटर में जमा करके अपना रसीद ले लें और दर्शन पास में दिए हुए गेट नंबर पर जाकर आप दर्शन के लिए लाइन में लग जाइये।
दर्शन के बाद संस्थान की तरफ से बांटे जा रहे साईं की उदी और बूंदी के पैकेट जरूर ले लीजिये।
शिरडी में साईं बाबा समाधी मंदिर के पास घूमने की जगह
समाधी मंदिर के परिसर में ही ऐसी कई जगहें हैं जहाँ आप को दर्शन के बाद जरूर जाना चाहिए जैसे की गुरुस्थान (नीम का पेड़), साईं संग्रहालय, द्वारकामाई, श्री चावड़ी और मारुती मंदिर। खंडोबा मंदिर भी साईं समाधी मंदिर से कुछ ही दूरी पर स्थित जहाँ पर आप चल कर भी जा सकते हैं।
इन सब के अलावा समाधी मंदिर से ५ मिनट की दूरी पर Wet n Joy water park और साईंतीर्थ भी है जहाँ पर जाकर आपको बहोत मज़ा आएगा। वाटर पार्क तो अभी Covid की वजह से बंद हैं लेकिन आप साईंतीर्थ जा सकते हैं। साईंतीर्थ साईं बाबा की जीवनी पर आधारित एक आध्यात्मिक थीम पार्क हैं जहाँ पर अलग अलग आध्यात्मिक प्रोग्राम दिखाए जाते हैं। उनमें से एक, लंका दहन १५ मिनट की 5D short मूवी है जो काफी मनोरंजक है और दर्शक इसे बहोत पसंद भी करते हैं।
सुप्रसिद्द शनि शिंगणापुर मंदिर साईं बाबा समाधी मंदिर से २ घंटे की दूरी पर है आप वहां भी जा सकते हैं। शिरडी के बाहर अगर आसपास के शहर घूमने की इच्छा है तो आप नाशिक जा सकते हैं जहाँ पर रामायण से जुड़ी घटनाएं घटित हुई हैं। पंचवटी, त्रयंबकेश्वर, वणी, मुक्तिधाम, पांडव लेणी इत्यादि नाशिक के जाने माने मंदिर/स्थल हैं जिनकी अपनी विशेषताएं हैं।
आपकी शिरडी यात्रा साईं बाबा की कृपा से शुभकारी, मंगलमय और सफल हो। ॐ साईं राम।
अयि गिरिनन्दिनि नन्दितमेदिनि - महिषासुरमर्दिनि स्तोत्र लिरिक्स हिंदी में
महिषासुरमर्दिनि स्तोत्र माँ दुर्गा की बहुत ही सुन्दर स्तुति है और यह उनके रूप, युद्ध कौशल और उनकी महत्ता को दर्शाता है। महिषासुरमर्दिनि माँ दुर्गा का ही एक स्वरुप हैं जिन्होंने महिषासुर नामक राक्षस का वध किया और इसी कारण इनका नाम महिषासुरमर्दिनि पड़ा। महिषासुरमर्दिनि स्तोत्र में माँ की विभिन्न विशेषताओं दया, क्षमा, रक्षा प्रकृति का वर्णन अतिसुन्दर तरीके से किया गया है। महिषासुरमर्दिनि स्तोत्र "अयि गिरिनन्दिनि नन्दितमेदिनि" हिंदी lyrics mp3 के साथ नीचे दिए गए है।
माँ चंद्रघंटा मंत्र और आरती Lyrics in हिंदी with mp3
नवरात्री के तीसरे दिन माँ दुर्गा के तीसरे रूप माँ चंद्रघंटा की उपासना की जाती है। माँ के मस्तक पर घंटे के अकार का अर्धचंद्र है और इसी वजह से इन्हें माँ चंद्रघंटा कहा जाता है। इनका वाहन सिंह है और इनका स्वरुप सुनहरा, भव्य और कल्याणकारी है। इनके १० हाथ हैं जो विभिन्न प्रकार के शस्त्र और शक्ति से सुशोभित है। इनके हाथों में कमल का फूल, कमंडल, त्रिशूल, गदा, तलवार, धनुष और बाण हैं। इसके अलावा एक हाथ आशीर्वाद मुद्रा में है, एक हाथ ह्रदय पर और एक हाथ अभय मुद्रा में है। माँ चंद्रघंटा की आराधना से अहंकार का नाश होता है और परम पद व सौभाग्य की प्राप्ति होती है।