शिरडी के साईं बाबा कौन हैं?
यह लेख उन लोगों के लिए है जिन्होंने शिरडी के साईं बाबा के बारे में सुना तो है लेकिन उनके बारे में कोई जानकारी नहीं है और वे साईं को जानना चाहते हैं।
साईं बाबा, जिन्हें शिरडी साईं बाबा या श्री साईनाथ के नाम से भी जाना जाता है, एक भारतीय आध्यात्मिक गुरु थे जिन्हें संत के रूप में पूजा जाता है। शिरडी के साईं बाबा की पहचान किसी एक धर्म से नहीं जुड़ी, बल्कि हिंदू, मुस्लिम के अलावा और अन्य समुदायों के भक्त समान रूप से उनसे प्रेरित हैं और उनका सम्मान करते हैं। साईं बाबा का जीवन, उनकी शिक्षाएँ और उनके चमत्कारों की कहानियाँ आज भी लाखों लोगों को प्रेरित करती हैं। साईं बाबा का "श्रद्धा और सबुरी" का पाठ उच्चतम जीवन का सार है जो व्यक्ति को सही रास्ते पर बने रहने और हर परिस्थिति का सामना करने में मदद करता है।
उनका पहनावा फकीरों की तरह था और उनकी जुबां पे अल्लाह मालिक शब्द अक्सर सुना जाता था, इससे कुछ लोगों को लगता है वो मुस्लिम समुदाय से हैं इसलिए कई लोग उनके विरुद्ध हैं। आज जहाँ करोड़ों की संख्या में उनके अनुयायी हैं, वही उनसे नफरत करने करने वालों की भी कमी नहीं है। ये उनकी अज्ञानता है जो उन्हें अभी तक साईं महिमा की समझ नहीं आयी। वो लोग जो अध्यात्म को समझते हैं, उन्हें साईं को समझने में कोई दिक्कत नहीं आनी चाहिए क्योंकि एक आध्यात्मिक व्यक्ति, शरीर के अंदर जो दिव्यात्मा निवास कर रही है, उसे पहचानती और समझती है। एक youtube वीडियो में सुना था, "जब साईं बाबा की इच्छा होगी तब साईं के विरुद्ध बातें करने वाले भी शिरडी मंदिर में दर्शन के लिए लाइन में खड़े मिलेंंगे", और यह बात पूर्णतः सत्य है।
साईं बाबा अपने औषधीय ज्ञान से बहोत सारे लोगों की बीमारियों को भो दूर करते थे। ऐसे अनेकानेक लोगो के अनुभव हैं।
साईं ने हर किसी को समान रूप से ही देखा। वो जाति, धर्म, ऊंच, नीच, अमीर, गरीब इन सब से परे थे और हमेशा लोगों को समभाव में ही देखते थे। हर जीव उनके लिए एक समान था। उन्होंने सबसे एक जैसा ही प्रेम किया और वही पाठ लोगों पढ़ाया।
साईं बाबा का जीवन
साईं बाबा के जन्म, उनके माता-पिता और उनके प्रारंभिक जीवन के बारे में कोई निश्चित जानकारी उपलब्ध नहीं है। उन्होंने स्वयं कभी अपने मूल का खुलासा नहीं किया, और यह उनके भक्तों के लिए एक रहस्य बना रहा।
शिरडी में पहली बार उन्हें लगभग 16 वर्ष की आयु में, सन १८५४ में एक नीम के पेड़ के नीचे गहन ध्यान में बैठे देखा गया था। उनके शांत स्वभाव और आध्यात्मिक आभा ने जल्द ही कुछ स्थानीय लोगों का ध्यान आकर्षित कर लिया था। कुछ ही दिनों में साईं वहां से बिना कुछ कहे चले गए थे और फिर कई सालों बाद सन १८५८ में फिर से शिरडी में उनका आगमन हुआ। इस बार जो साईं शिरडी आए, शिरडी में बस गए और १५ October १९१८ में दशहरा के पावन पर्व के दिन महासमाधि ली।
साईं बाबा का शिरडी में निवास - द्वारकामाई
सन १९५८ में दोबारा आने के बाद, साईं बाबा ने अपने जीवन का बाकी समय शिरडी में एक पुरानी और जर्जर मस्जिद में बिताया, जिसे उन्होंने "द्वारकामाई" नाम दिया था। द्वारकामाई साईं बाबा के निवास स्थान, उनके दरबार और उनके उपदेशों का केंद्र बन गई। यहीं पर उन्होंने अपनी पवित्र अग्नि, "धुनी" को भी प्रज्वलित किया जो आज भी प्रज्वलित है और जिसकी राख "उदी" उनके भक्तों में बांटा जाता है। इस उदी को चमत्कारी और रोगनाशक गुणों वाला माना जाता था।
साईं बाबा की समाधी मंदिर के पास में ही द्वारकामाई स्थित है। साईं भक्तों का मानना है साईं अभी भी यहाँ निवास करते इसलिए साईं मंदिर में दर्शन के पहले या बाद में द्वारकमाई में भी लोग आते हैं दर्शन के लिए। कई लोगों ने तो यहाँ उनकी उपस्थिति को भी अनुभव किया है।
साईं बाबा की शिक्षाएँ
उनकी शिक्षाओं का सार आत्म-साक्षात्कार, प्रेम, क्षमा, दूसरों की मदद करना, दान, संतोष और आंतरिक शांति जैसे नैतिक मूल्यों पर आधारित था। उन्होंने ईश्वर और गुरु के प्रति अटूट भक्ति के महत्व पर बल दिया। उनके दो प्रमुख सिद्धांत थे: श्रद्धा (विश्वास) और सबूरी (धैर्य)। उन्होंने सिखाया कि सच्चा विश्वास और धैर्य ही व्यक्ति को जीवन की कठिनाइयों से पार पाने और आध्यात्मिक लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद कर सकते हैं।
श्रद्धा और सबुरी - ये साईं बाबा की मुख्य शिक्षाएँ हैं। श्रद्धा यानी पूरी निष्ठा जो मनुष्य को भय और निराशा से बचाती है और सबुरी यानी धैर्य जिससे इंसान हर परिस्थिति में स्थिर रहता है और निराशा में गलत कदम उठाने से बचता है।
साईं बाबा ने हमेशा "सर्वधर्म समभाव" का सन्देश दिया और सभी धर्मों की एक ही बताया। उन्हें रामायण, भगवद गीता और कुरान, सबका ज्ञान था। उनका प्रसिद्ध महावाक्य "सबका मालिक एक" (सभी का भगवान एक है) उनकी मूल शिक्षा को दर्शाता है। किसी भी जाति, धर्म, ऊंच, नीच, अमीर, गरीब का अंतर किये बिना, साईं बाबा सबको जोड़कर रखना चाहते थे। अपने उपदेश और शिक्षाओं से उन्होंने हमेशा यही सन्देश दिया।
साईं बाबा सबके प्रति प्रेम भाव रखने और मानव सेवा-जीव सेवा पर जोर देते थे। उन्हें जो भी भिक्षा मिलती वो उसे सबसे बाँट कर खाते थे, भले ही वो पास में बैठा कुत्ता या कोई पक्षी ही क्यों न हो। उन्होंने हमेशा प्रेम, दया और मानवता का संदेश दिया।
साईं बाबा के चमत्कार
साईं बाबा एक साधारण फकीर की तरह रहते थे, परंतु उनके कर्म असाधारण थे। साईं बाबा के जीवन में अनेक ऐसे प्रसंग मिलते हैं जिन्हें साईं भक्त दिव्य चमत्कार मानते हैं। कहा जाता है कि बाबा अपने भक्तों की पीड़ा को बिना बताए ही समझ लेते थे और समय पर सहायता पहुँचाते थे। उनके “उदी” (राख) के चमत्कार बड़े प्रसिद्ध हैं - कई भक्तों ने अपने अनुभव साझा किये हैं कि उदी से गंभीर रोग भी ठीक हो गए।
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कई कथाओं में यह भी मिलता है कि बाबा ने अपने भक्तों को अनहोनी घटनाओं से पहले ही सावधान कर दिया। कुछ भक्तों का कहना है कि जब वे कठिन परिस्थितियों में थे, बाबा ने किसी न किसी रूप में प्रकट होकर उनकी रक्षा की।
उनके चमत्कार लोगों को भक्ति, विश्वास और सद्कर्म की राह पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं। आज भी लाखों भक्त मानते हैं कि बाबा अदृश्य रूप में उनकी देखभाल करते हैं और संकटों से उबारते हैं।
साईं हमसे दूर नहीं बल्कि हमेशा साथ हैं, बस एक आवाज़ लगाने की देर है। पूरी श्रद्धा और प्यार से पुकार के तो देखो वो सामने ही होंगे किसी न किसी रूप में।
ॐ साईं राम, जय साईं राम।



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