Monday, April 11, 2022

साईं बाबा की उदी के चमत्कार

साईं बाबा की उदी के चमत्कार

साईं बाबा नित्य ईंधन इकटठा कर वे अखण्ड जलने वाली पवित्र धुनी प्रज्वलित रखा करते थे। लकडी जलने के बाद श्री बाबा बची हुई राख, जिसे ऊदी कहते थे, सभी भक्तों को विदा होने के समय प्रसाद के रूप में बाँटा करते थे।

उस समय श्री साईं बाबा की ऊदी का महत्व लोगों ने स्वीकार किया था और अभी भी वर्तमान समय में श्री साईं बाबा के हस्तस्पर्श से पुनीत हुई धूनी की ऊदी भक्तों के लिए एक अत्यन्त मूल्यवान निधि है। साईं ऊदी ने हजारों भक्तों की मानसिक तथा शारीरिक व्यथाओं को दूर करने का अद्भुत चमत्कार कर दिखाया है।

sai baba udi ke chamatkar


द्वारकामाई में निरंतर प्रज्जलित रहने वाली धूनी की विभूति अर्थात साईं की उदी के सम्बन्ध में हज़ारों लोगों को विलक्षण अनुभव हो चुके हैं। साईंभक्तों के उन्ही अनुभवों में से कुछ अनुभव यहाँ आपके साथ साझा किये गए हैं और समय समय पर और भी घटनाओ को इसमें जोड़ा जायेगा।


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1. साईं बाबा की उदी से पारसी व्यक्ति की बेटी मिर्गी रोग से मुक्त हुई

एक पारसी सज्जन की छोटी लड़की मिर्गी के रोग से ग्रस्त हो गई। बार-बार उसके हाथ-पैर ऐठ जाते और वह मूर्छित हो जाती थी। उस सज्जन ने साईं बाबा की ऊदी का प्रयोग किया और धीरे-धीरे लड़की रोग-मुक्त हो गई।


2. साईं बाबा की उदी से वृश्चिक का विष उतर गया

नासिक क्षेत्र में नारायण मोतीराम जानी नाम के एक सज्जन श्री साई महाराज के परम भक्त रामचंद्र मोडक के पास नौकरी करते थे। एक दिन अनायास ही नारायणराव को श्री बाबा के दर्शनार्थ जाने का सुअवसर प्राप्त हुआ। दर्शन करते समय नारायणराव की माता ने श्री बाबा से अपन पुत्र पर कृपा-दृष्टि रखने की प्रार्थना की। श्री बाबा ने नारायणराव को आशीर्वाद दत हुए कहा, "अब इसके उपरांत किसी की सेवा-चाकरी न करो। अपना ही कोई स्वतंत्र व्यवसाय आरम्भ करो।" उसी क्षण नारायणराव ने अपना नौकरी से त्याग-पत्र दे दिया और नासिक में 'आनंदाश्रम' की स्थापना कर शीघ्र ही अपने व्यापार में पर्याप्त उन्नति की।

कुछ दिनों के बाद नारायणराव के इसी 'आनंदाश्रम' में उनका एक चिर-परिचित मित्र थोड़े दिन रहने के उद्देश्य से आया। एक दिन एकाएक उसे वृश्चिक ने काट लिया। वृश्चिक के काटने से होने वाली वेदना दूर करने का सामर्थ्य श्री बाबा के ऊदी में है, यह नारायणराव भली-भाँति जानते थे। अतएव वे तुरंत ही ऊदी ढूँढने लगे। पंरतु शिरडी से जो ऊदी वे लाये थे, वह समाप्त हो चुकी थी। इधर उनका मित्र असह्य वेदना से तड़प रहा था। आखिर नारायणराव ने श्री बाबा का चित्र के सम्मुख रख वहाँ एक सुगन्धित अगरबत्ती जलाई और श्री बाबा के नाम का जप करना आरम्भ कर दिया। नियम समय पर जप पूरा होने के पश्चात् चित्र के सामने पडी हुई अगरबत्ती की राख में से एक चुटकी भर राख उठाकर नारायणराव ने उसे ही श्री बाबा की ऊदी मानकर मित्र के उसी अंग पर लेप कर दिया, जहाँ वृश्चिक ने काटा था। मित्र की वेदना तुरंत बंद हो गई और वृश्चिक का विष उतर गया। नारायणराव का मित्र पूर्ववत् स्वस्थ चित्त हो गया। नारायणराव बहुत प्रसन्न हुए और श्री बाबा में उनकी भक्ति और भी दृढ़ हो गई।


3. साईं बाबा की उदी समान मिट्टी ने प्लेग का रोग दूर किया

श्री बाबा द्वारा अपने हाथों से दी हुई ऊदी का जितना गुणकारी प्रभाव होता था, उतनी ही उनके श्रद्धालु भक्तों द्वारा उनके नाम पर दी हुई भस्म भी अचूक फलदायी सिद्ध होती थी। नानासाहेब चाँदोरकर एक बार अपनी पत्नी सहित कल्याण जा रहे थे। मार्ग में ठाणा स्टेशन पर बांद्रा में रहने वाले उनका एक मित्र उन्हें मिला और बड़ी घबड़ाहट में उसने सूचित किया कि उसकी लड़की को प्लेग हो गया। नानासाहेब के पास उस समय श्री बाबा की ऊदी नहीं थी। पंरतु भक्ति और श्रद्धा से श्री बाबा का नाम स्मरण कर उन्होंने अपने पैर तले की एक चुटकी भर मिटटी लेकर अपने मित्र काद दी और उसे श्री साई महाराज के चरणों में लीन होने का आदेश दिया।

नानासाहेब के मित्र ने घर जाकर प्लेग की गुठलियों पर ऊदी का लेप लगा दिया। उसी क्षण से लडकी का ज्वर दूर होना आरम्भ हो गया और प्लेग जैसे असाध्य रोग से लड़की शीघ्र ही रोग मुक्त हो गई। साईं बाबा का केवल नाम स्मरण कर उठाई हुई मिटटी ने भी कितना अद्भुत चमत्कार कर दिखाया।

नानासाहेब चाँदोरकर ने साईं बाबा का नाम लेकर ऊदी के बदले मिट्टी देकर जिस साहस का परिचय दिया, उसका एकमेव कारण था, साईं बाबा में उनका अटूट विश्वास तथा अविचल श्रद्धा।

साईं बाबा द्वारा अपने हाथों से दी हुई उदी का जितना गुणकारी प्रभाव होता है, उतनी ही उनके श्रद्धालु भक्तों द्वारा उनके नाम पर दी हुई भस्म भी अचूक फलदायी सिद्ध होती है।


4. नानासाहेब चाँदोरकर की पुत्री का सकुशल प्रसव 

नानासाहेब चाँदोरकर जब जामनेर में तहसीलदार का पद सुशोभित कर रहे थे तो एक बार श्री बाबा की उदी का उन्हें भी विलक्षण अनुभव हुआ था। खानदेश जिले के जामनेर जैसे साधारण तथा सर्वथा अपरिचित गाँव में जब वे कार्यवश निवास कर रहे तो उन्हें एक बार अति विकट परिस्थिति का सामना करना पड़ा था। उनकी लाड़ली बेटी मैनाताई प्रसव के लिए जामनेर आई हुई थी। दिन पूरे होते ही एकाएक उसकी अवस्था गम्भीर हुई। लगातार तीन दिन प्रसव वेदना जारी रही। स्थिति में सुधार होने की संभावना दिखाई न दी ओर सभी लोग चिंता में डूब गये।

नानासाहेब तथा उनकी पत्नी ने श्री बाबा का नाम स्मरण आरम्भ किया। ठीक इसी समय शिरडी में बैठे-बैठे श्री बाबा ने अंतर्ज्ञान से जान लिया कि उनका भक्त संकट में है। उन्होंने खानदेश मे अपने गाँव जाने के लिए उद्यत एक साधु रामगीर बुवा को बुलवाया और उसे आज्ञा दी कि गाँव जाते समय मार्ग में जामनेर में थोड़ी देर ठहर कर नानासाहेब चाँदोरकर के पास ऊदी और आरती की एक प्रति पहुँचा दे। रामगीर बुवा ने नम्रता से उत्तर दिया कि उसके पास केवल दो ही रूपये बाकी है, जो जलगाव तक ही रेल का किराया चुकाने के लिए पर्याप्त है। इस पर श्री बाबा के यह का पर कि वह कोई चिंता न करे, उसकी सारी व्यवस्था हो जायेगी। 

रामगार निःसंदेह मन से श्री बाबा की आज्ञानुसार दोनों वस्तुएँ लेकर चल जलगाँव स्टेशन पर वे रात को लगभग तीन बजे उतरें। उस समय उनके पास केवल दो आने ही बचे थे। चिंता में व्याप्त हो रामगीर बुवा यह सोच ही रहे थे कि आगे क्या करना चाहिएँ कि तभी एक अपरिचित व्यक्ति ने आकर प्रश्न किया-"शिरडी का रामगीर बुवा कौन है ?" रामगीर बुवा को जब ज्ञात हुआ कि नानासाहेब ने ही उस व्यक्ति को ताँगा साथ लेकर भेजा है, तो वे उसके साथ ताँगे में बैठ जामनेर की ओर चल दिए और प्रातःकाल जामनेर पहुँचे।

गाँव की सीमा के निकट पहुँचने पर रामगीर बुवा लघुशंका से निवृत्त होने के लिए थोडी देर के लिए ताँगे में से उतरे। वापस आकर देखा तो वह मनुष्य और ताँगा दोनों ही अदृश्य हो चुके थे। इस घटना से रामगीर बुवा के आश्चर्य का ठिकाना न रहा। अकेले ही समीप एक कचहरी में प्रवेश कर उन्होंने नानासाहेब के संबंध में पूछताछ की और पूछते-पूछते उनके घर पहुँच गये।

रामगीर बुवा ने नानासाहेब को बतलाया कि श्री बाबा की आज्ञा से वे शिरडी से जामनेर आये है। श्री बाबा की दी हुई ऊदी तथा आरती का कागज उन्होंने नानासाहेब को सौंप दिया। उस नानासाहेब की लड़की मैनाताई बहुत गंभीर तथा संकटपूर्ण अवस्था में थी, मानो अतिम साँसे ले रही हो। घर के सभी लोग नितांत निराश हो बैठे थे। नानासाहब ने पत्नी को बुलाकर श्री बाबा की भेजी हुई ऊदी उसके सुपुर्द कर दी। 

लडकी के कमरे में प्रवेश कर नानासाहेब की पत्नी ने घोलकर उसे पिला दी और वह स्वयं श्री बाबा की भेजी हुई आरती गाने लगी। श्री बाबा की ऊदी ने अद्भुत चमत्कार दिखाया। कुछ ही देर बाद मैनाताई कशलतापूर्वक प्रसव पीडा से मुक्त हो गई और एक संत बालक के रोने की आवाज वहाँ उपस्थित लोगों के कानों में गूँज उठी।

सभी ने अत्यन्त प्रेम और श्रद्धा से साईं के चरणों मे अपने मस्तक नत किये। रामगीर बुवा ने धन्यवाद देते हुए नानासाहेब से कहा कि उन्होंने ठीक समय पर अपना आदमी और ताँगा दिया था, इसलिये वे ठीक समय पर उपस्थित हो सके। परंत, रामगीर बुवा के ये शब्द सुनकर तो नानासाहेब अचम्भे में पड़ गए, क्योंकि ये बातें उनके ध्यान में ही नहीं आई थी। अपनी पुत्री के लिए वे इतने अधिक चिंताग्रस्त थे कि यह सब कुछ करना उनके लिए बिल्कुल असम्भव था और वैसे भी नानासाहेब ने किसी भी व्यक्ति को ताँगे के साथ स्टेशन नहीं भेजा था, क्योंकि रामगीर बुवा के जामनेर आने की कोई पूर्व सूचना तो उन्हें थी नही।

तदनंतर सभी उपस्थित लोगों ने उस गढ़वाली क्षत्रिय मनुष्य तथा उसके ताँगे की पर्याप्त खोज की। परंतु उसका कहीं भी पता न लग सका। वास्तव में प्रत्यक्ष श्री साई महाराज ही अपने भक्त के संकट निवारणार्थ वहाँ प्रकट हुए थे। श्री बाबा की लीलाएँ ऐसी ही विस्मयकारी होती थी। इस घटना से नानासाहेब का श्री बाबा में विश्वास और भी दृढ़ हो गया।


5. डॉक्टर को समझ आई साईं उदी की महिमा

मालेगाँव के एक सुप्रसिद्ध डॉक्टर का एक तरूण भतीजा हड्डी के क्षय रोग से ग्रस्त हुआ। स्वयं डॉक्टर साहब ने निजी प्रयत्नों से उसे स्वस्थ करने में कोई कसर न छोडी। अन्य प्रसिद्ध सर्जनों से विचार-विमर्श किया गया। अंतिम उपाय के रूप में उस लड़के पर शल्य-क्रिया भी की गई। पंरतु, रूपये में आना भर भी लाभ न हुआ। अंततः कुछ समझदार लोगों ने लडके के माता-पिता को किसी दैवी उपाय का आश्रय लेने का परामर्श दिया और इस अभिप्राय से ही श्री साई महाराज का उल्लेख किया।

लड़के के माता-पिता ने तुरंत ही शिरडी के लिए प्रस्थान किया और श्री बाबा के चरणों में लड़के को डालकर उसे जीवन-दान देने के लिए उनसे अनन्य भाव से प्रार्थना की। मुस्कुराते हुए लड़के की ओर देखकर श्री बाबा बोले, “इस द्वारकामाई का जिसने सहारा लिया, उसे कभी भी कोई दुःख सहन नहीं करना पड़ेगा। आप यत्किंचित चिंता न करें। ईश्वर में पूर्ण भरोसा रखो और मेरी धूनी की ऊदी का रोग-ग्रस्त स्थान पर सतत् लेप करते रहो। एक सप्ताह में लड़का रोग-मुक्त हो जायेगा।" 

लड़के संबंधियों ने श्री साईं बाबा का बताया हुआ उपचार करने का दृढ़ निश्चय किया। श्री बाबा ने लड़के को अपने पास बैठाया। उसके शरीर के रोग-ग्रस्त भाग पर प्रेम से धीरे-धीरे हाथ फेरकर और एक क्षण के लिए एकाग्रचित्त से उसकी और देखते हुए श्री बाबा पुनः बोले- “यह मस्जिद नही, वरन् प्रत्यक्ष भगवान श्रीकृष्ण की द्वारावती है। यहाँ आने से सब दुःख तथा पापों का नाश होना ही चाहिये। श्री बाबा के मुख से इतने आत्मविश्वास के साथ निकले हुए बोल असत्य कैसे सिद्ध हो सकते है ? वह लड़का केवल आठ दिनों में पूर्णतः रोग मुक्त हुआ और श्री बाबा से ऊदी प्रसाद प्राप्त कर सब लोग हर्ष-विभोर हो अपने गाँव लौट गये। लड़के को बिल्कुल स्वस्थ देख उसके चाचा को, जो स्वयं डॉक्टर थे, बडा आश्चर्य हुआ और उन्होंने इसे एक चमत्कार ही समझा।


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कुछ दिनों पश्चात् डॉक्टर साहब निजी व्यवसाय के कारण बम्बई जाने के लिए निकले। उन्होने मार्ग में शिरडी में उतरकर श्री बाबा के दर्शन करने का भी मन-ही-मन निश्चय किया। पंरतु मालेगाँव से मनमाड के मध्य मिले हुए कुछ मित्रों ने श्री बाबा के विषय में कुछ असत्य तथा मनगढन्त कहानियाँ सुनाकर उन का मन कलुषित कर दिया। अब शिरडी जाने का संकल्प त्यागकर डॉक्टर साहब सीधे बम्बई पहुँचे।

वहाँ लगातार तीन रात सपनों में डॉक्टर साहब के कानों में कोई मनुष्य चिल्लाकर “अब भी तुम्हारा मुझमें विश्वास नहीं ?" ये शब्द स्पष्टतः उच्चार करता रहा। स्वप्न में मिली हुई इस शिक्षा के बल पर डॉक्टर साहब ने शिरडी जाने का पुनः दृढ़ निश्चय किया। उस समय उनके पास उपचार के लिए आये हुए एक रोगी की अवस्था गम्भीर थी। उसका ज्वर लगातार बढ़ता ही जा रहा था। 

“मेरे रोगी का ज्वर यदि तुरंत ही दूर हुआ तो एक क्षण के लिए भी विलम्ब न कर शिरडी पहुँचूँगा” इस प्रकार मन में निश्चय कर नित्य की भाँति डॉक्टर साहब रोगी को देखने के उददेश्य से चल पड़े। आश्चर्य यह हुआ कि उस दिन रोगी को ज्वर नही आया। डॉक्टर साहब का पूर्ण समाधान हुआ। श्री बाबा कोई सामान्य व्यक्ति न होकर परमोच्च कोटि पर पहुँची हुई एक असामान्य विभूति है, यह दृढ़ भावना डॉक्टर साहब के मन में उत्पन्न हुई और उन्होंने शिक्षा पहुँचते ही नम्रता से श्री बाबा के चरणों में आत्मसमर्पण कर दिया। 

वहीं श्री बाबा ने कुछ और लीलाएँ दिखाकर, द्वारकामाई की ऊदी में कितना प्रचण्ड सामर्थ्य भरा हुआ है, यह प्रमाणों सहित सिद्ध कर दिखाया। डॉक्टर साहेब तद्नंतर श्री बाबा की सेवा में तल्लीन हुए, बहुत दिन शिरडी में रहे और ऊदी प्रसाद प्राप्त कर वापिस गाँव पहुँचे। मालेगाँव पहुँचते ही उन्हें बीजापुर में एक उच्च पद पर नियुक्त होने की सूचना मिली। भतीजे का रोग-ग्रस्त होना एक निमित्त मात्र हुआ और डॉक्टर साहब को एक परमोच्च कोटि में पहुँचे हुए सिद्ध पुरूष के सहवास का दुर्लभ अवसर मिला। यह सचमुच पूर्व जन्म का पुण्यों का फल ही समझना चाहिए।

1 comment:

  1. आपकी लेखनी कमाल की है , आपने साई बाबा से जुड़े बहुत से प्रश्न उत्तरों का जवाब बहुत ही अच्छे तरीके से दिया .

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