Saturday, May 29, 2021

आदि अनादि अनंत अखंड - शिव स्तुति Lyrics in हिंदी, mp3

शिव स्तुति Lyrics in हिंदी - आदि अनादि अनंत अखंड  (with mp3)

शिव स्तुति भगवान शिव की स्तुति में रचित सबसे प्रसिद्ध कविताओं में से एक है। स्तुति का अर्थ है ईश्वर के स्वरूप को अपने हृदय में साकार कर उसकी स्तुति करना। नीचे शिव स्तुति के लिरिक्स mp3 के साथ दिए गए हैं।

Also, listen शिव चालीसा.


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शिव स्तुति Lyrics in Hindi

आदि अनादि अनंत अखंड अभेद अखेद सुबेद बतावैं।

अलग अगोचर रूप महेस कौ जोगि-जति-मुनि ध्यान न पावैं॥

आगम-निगम-पुरान सबैं इतिहास सदा जिनके गुन गावैं।

बड़भागी नर-नारि सोई जो सांब-सदाशिव कौं नित ध्यावैं॥


सृजन सुपालन-लय-लीला हित जो बिधि-हरि-हर रूप बनावैं।

एकहि आप बिचित्र अनेक सुबेष बनाइ कैं लीला रचावैं॥

सुंदर सृष्टि सुपालन करि जग पुनि बन काल जु खाय पचावैं।

बड़भागी नर-नारि सोई जो सांब-सदाशिव कौं नित ध्यावैं॥


अगुन अनीह अनामय अज अविकार सहज निज रूप धरावैं।

परम सुरम्य बसन-आभूषन सजि मुनि-मोहन रूप करावैं॥

ललित ललाट बाल बिधु बिलसै रतन-हार उर पै लहरावैं।

बड़भागी नर-नारि सोई जो सांब-सदाशिव कौं नित ध्यावैं॥


अंग बिभूति रमाय मसान की बिषमय भुजगनि कौं लपटावैं।

नर-कपाल कर मुंडमाल गल, भालू-चरम सब अंग उढ़ावैं॥

घोर दिगंबर, लोचन तीन भयानक देखि कैं सब थर्रावैं।

बड़भागी नर-नारि सोई जो सांब-सदाशिव कौं नित ध्यावैं॥


सुनतहि दीनकी दीन पुकार दयानिधि आप उबारन आवैं।

पहुँच तहाँ अविलंब सुदारून मृत्यु को मर्म बिदारि भगावैं॥

मुनि मृकंडु-सुत की गाथा सुचि अजहुँ विज्ञजन गाइ सुनावैं।

बड़भागी नर-नारि सोई जो सांब-सदाशिव कौं नित ध्यावैं॥


चाउर चारि जो फूल धतूरे के, बेल के पात औ पानी चढ़ावैं।

गाल बजाय कै बोल जो 'हर हर महादेव' धुनि जोर लगावैं॥

तिनहिं महाफल देय सदासिव सहजहि भुक्ति-मुक्ति सो पावैं।

बड़भागी नर-नारि सोई जो सांब-सदाशिव कौं नित ध्यावैं॥


बिनसि दोष दुख दुरित दैन्य दारिद्रय नित्य सुख-शांति मिलावैं।

आसुतोष हर पाप-ताप सब निरमल बुद्धि-चित्त बकसावैं॥

असरन-सरन काटि भवबंधन भव निज भवन भव्य बुलवावैं।

बड़भागी नर-नारि सोई जो सांब-सदाशिव कौं नित ध्यावैं॥


औढरदानि, उदार अपार जु नैकु-सी सेवा तें ढुरि जावैं।

दमन अशांति, समन संकट, बिरद बिचार जनहि अपनावैं॥

ऐसे कृपालु कृपामय देव के क्यों न सरन अबहीं चलि जावैं।

बड़भागी नर-नारि सोई जो सांब-सदाशिव कौं नित ध्यावैं॥


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