Wednesday, August 26, 2020

हम कथा सुनाते राम सकल गुणधाम की Lyrics in Hindi and mp3

हम कथा सुनाते राम सकल गुणधाम की (Hum katha sunate Ram sakal Gundham ki) Lyrics and mp3 in Hindi

दूरदर्शन चैनल पर प्रसारित धार्मिक धारावाहिक रामायण में लव-कुश द्वारा गया हुआ गीत "हम कथा सुनाते राम सकल गुणधाम की" के बोल यहाँ पर अक्षरों-मात्राओं का ख़ास ख्याल रखते हुए वर्णित किये गए हैं।

Hum katha sunate lyrics in Hindi Ramayan song by Luv-Kush.

hum katha sunate lyrics in hindi


Hum katha sunate lyrics (हम कथा सुनाते गीत के बोल and mp3 )

ॐ श्री महा गणाधि पतये नमः।
ॐ श्री उमामहेश्वराभ्या नमः।
वाल्मीकि गुरुदेव के कर पंकज सिर नाम। सुमिरे मात सरस्वती हम पर हो हूँ सहाय।
मात पिता की वंदना, करते बारंबार।
गुरुजन-राजा-प्रजाजन, नमन करो स्वीकार।
हम कथा सुनाते राम सकल गुणधाम की। - 2
ये रामायण है पुण्य कथा श्री राम की।

जंबू द्वीपे भरत खंडे, आर्यावर्ते भारत वर्षे।
एक नगरी है विख्यात अयोध्या नाम की।
यही जन्मभूमि है परम पूज्य श्री राम की।
हम कथा सुनाते राम सकल गुणधाम की।
ये रामायण है पुण्य कथा श्री राम की। -2


Play 👇 Ramayan song by Luv Kush "हम कथा सुनाते राम सकल गुणधाम की ..."(mp3) here.



रघुकुल के राजा धरमात्मा,
चक्रवर्ती दशरथ पुण्यात्मा।

संतति हेतु यज्ञ करवाया,
धर्म यज्ञ का शुभफल पाया।

नृप घर जन्मे चार कुमारा,
रघुकुल दीप जगत आधारा।

चारों भ्राताओं के शुभ नामा,
भरत, शत्रुघ्न, लक्ष्मण, रामा।
गुरु वशीष्ठ के गुरुकुल जाके,
अल्प काल विद्या सब पाके।
पुरन हुयी शिक्षा रघुवर पूरण काम की।
हम कथा सुनाते राम सकल गुणधाम की। - 2
ये रामायण है पुण्य कथा श्री राम की।

मृदु स्वर कोमल भावना, रोचक प्रस्तुति ढंग।
एक एक कर वर्णन करे, लव-कुश राम प्रसंग।
विश्वामित्र महामुनि राई, इनके संग चले दो भाई।

कैसे राम ताड़का मारी, कैसे नाथ अहिल्या तारी।
मुनिवर विश्वामित्र तब, संग ले लक्ष्मण राम।
सिया स्वयंवर देखने, पहुंचे मिथिला धाम।

जनकपुर उत्सव है भारी। - 2
अपने वर का चयन करेगी, सीता सुकुमारी।
जनकपुर उत्सव है भारी।

जनक राज का कठिन प्रण, सुनो सुनो सब कोई।
जो तोड़े शिव धनुष को, सो सीता पति होए।

जो तोडे शिव धनुष कठोर, सब की दृष्टि राम की ओर।
राम विनयगुण के अवतार, गुरुवर की आज्ञा सिरोद्धार।

सहज भाव से शिव धनु तोड़ा, जनक सुता संग नाता जोड़ा।
रघुवर जैसा और ना कोई, सीता की समता नहीं होई।
दोउ करे पराजित कान्ति कोटी रति काम की।

हम कथा सुनाते राम सकल गुणधाम की।
ये रामायण है पुण्य कथा सियाराम की।
सब पर शब्द मोहिनी डाली, मंत्रमुग्ध भए सब नर-नारी।
यूं दिन रैन जात है बीते, लव कुश ने सब के मन जीते।

वन गमन, सीता हरण, हनुमत मिलन, लंका दहन, रावण मरण, अयोध्या पुनरागमन।

सविस्तार कथा सुनाई, राजा राम भए रघुराई।

राम राज आयो सुख दायी, सुख समृद्धि श्री घर घर आई।

काल चक्र ने घटना क्रम में, ऐसा चक्र चलाया।
राम सिया के जीवन में, फिर घोर अंधेरा छाया।

अवध में ऐसा ऐसा ऐक दिन आया।
निष्कलंक सीता पे प्रजा ने मिथ्या दोष लगाया।
अवध में ऐसा ऐसा ऐक दिन आया।

चल दी सिया जब तोड़कर सब स्नेह-नाते मोह के।
पाषाण हृदयो में ना अंगारे जगे विद्रोह के।
ममतामयी माओ के आँचल भी सिमट कर रह गए।
गुरुदेव ज्ञान और नीति के सागर भी घट कर रह गए।
ना रघुकुल ना रघुकुल नायक, कोई ना सिया का हुआ सहायक।

मानवता को खो बैठे जब, सभ्य नगर के वासी।
तब सीता को हुआ सहायक, वन का एक सन्यासी।

उन ऋषि परम उदार का, वाल्मीकि शुभ नाम।
सीता को आश्रय दिया, ले आए निज धाम।

रघुकुल में कुलदीप जलाए, राम के दो सूत सिय ने जाये।

श्रोता गण, जो एक राजा की पुत्री है, एक राजा की पुत्रवधू है और एक चक्रवती राजा की पत्नी है वही महारानी सीता वनवास के दुखो में अपने दिन कैसे काटती है, अपने कुल के गौरव और स्वाभिमान की रक्षा करते हुये किसी से सहायता मांगे बिना कैसे अपने काम वो स्वयं करती है। स्वयं वन से लकड़ी काटती है, स्वयं अपना धान कूटती है, स्वयं अपनी चक्की पीसती है और अपनी संतान को स्वावलंबी बनने की शिक्षा कैसे देती है,अब उसकी करुण झांकी देखिये।

जनक दुलारी कुलवधु दशरथ जी की, राजरानी हो के दिन वन में बिताती है।
रहती थी घेरी जिसे दास-दासी आठो याम, दासी बनी अपनी उदासी को छूपाती है।
धरम प्रवीण सती परम कुलीन सब विधि दोशहीन जीना दुख में सिखाती है।
जगमाता हरी-प्रिय लक्ष्मी स्वरूप सिया, कूटती है धान भोज स्वयं बनाती है।
कठिन कुल्हाड़ी लेके लकड़िया कांटती है, करम लिखे को पर काट नहीं पाती है।
फूल भी उठाना भारी जिस सुकुमारी को था, दुख भरी जीवन का बोझ वो उठाती है।
अर्धांगी रघुवीर की वो धर धीरे, भरती है नीर नीर नैन में न लाती है।
पिस के प्रजा के अपवादों के कुचक्र में वो, पीसती है चाकी स्वाभिमान को बचाती है।
पालती है बच्चो को वो कर्मयोगिनी के भाति, स्वाभिमानी स्वावलंबी सफल बनाती है।
ऐसी सीता माता की परीक्षा लेते दुख देते, निठुर नियति को दया भी नहीं आती है।

ओ ओ ओ ओ उस दुखिया के राज-दुलारे, हम ही सूत श्री राम तिहारे।

ओ सीता माँ की आँख के तारे ऐ ऐ ऐ, लव-कुश है पितु नाम हमारे।

हे पितु भाग्य हमारे जागे, राम कथा कही राम के आगे।

राम कथा समाप्ति।

0 Comments: